Kabir Ke Sau Pad (Hindi)
Kabir Ke Sau Pad (Hindi)
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कबीर के सौ पद - ब्रह्मसमाजी पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश के कारण रवीन्द्रनाथ ठाकुर प्रारम्भ से ही कबीरदास की वाणियों से परिचित थे। क्षितिमोहन सेन के शान्तिनिकेतन में योगदान (1908 ई.) के बाद यह परिचय और घनिष्ठ हुआ। आचार्य सेन सन्त साहित्य के अध्येता थे। गरुदेव रवीन्द्रनाथ की प्रेरणा और आग्रह से उन्होंने कबीर के पदों का एक संग्रह तैयार किया जो बांग्ला अनुवाद सहित चार खण्डों में (1910-11 ई.) प्रकाशित हुआ, जिसमें 341 पद थे। शान्तिनिकेतन के एक और अध्यापक अजित कुमार चक्रवर्ती के सहयोग से रवीन्द्रनाथ ने कबीर के एक सौ से अधिक पदों का अंग्रेज़ी रूपान्तरण किया और उसे One Hundred Poems of Kabir के रूप में इंडिया सोसायटी, लन्दन से (1914 ई.) प्रकाशित कराया। इसकी भूमिका मिस्टिसिज्म की सुप्रसिद्ध विदुषी इवलिन अंडरहिल ने लिखी, जिसमें उन्होंने कबीरदास को विश्व के चुनिन्दा मिस्टिक (रहस्यवादी) कवियों की श्रेणी में स्थान दिया। विश्व की कई भाषाओं में इस पुस्तक का अनुवाद हुआ । प्रस्तुत ग्रन्थ में कबीर के रवीन्द्रनाथ कृत अंग्रेज़ी अनुवाद सहित मूलपाठ और उनका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है। अंडरहिल की भूमिका (Introduction) और सम्पादक के 'प्राक्कथन' में कबीर-विमर्श के कई बिन्दु उभरकर सामने आये हैं। परिशिष्ट के अन्तर्गत अजित कुमार और रवीन्द्रनाथ द्वारा प्रस्तुत कुछ (कुल 13) ऐसे अनुवाद दिये जा रहे हैं जो One Hundred Poems of Kabir में नहीं हैं।
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