Gaon Chodab Nahi: Odisha Ke Visthapan-Virodhi Jan Aandolano Ki Gaathayein
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उड़ीसा में बड़े बांधों, खनन और औधोगिकी परियोजनाओं के चलते होने वाले विस्थापन और बेदखली के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध के इर्द-गिर्द बनी गयी यह पुस्तक, राजनितिक और समाजीक आख्यानों को बयान करती है! बेदखली की यह गाथा आम किसानों, वनवासियों, मछुआरों, और भूमिहीन मजदूरों की कहानियों और आख्यानों से भरी है, जो प्रतिरोध के इतिहास के कैनवास को और अधिक सम्पूर्ण बनती है! वे तटीय मैदानों के साथ-साथ दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम उड़ीसा के पगड़ी और वन चित्रों में रहते हैं! लेखकों ने 1950 के दशक में हीराकूद बांध के निर्माण से लेकर समकालीन समय में पोस्को और वेदांत जैसे निगमों के प्रवेश तक के विकास पथ का वर्णन किया है! इस प्रकार यह पुस्तक स्वतंत्र भारत के बाद से 1990 के दशक की शुरुआत में नव-उदारीकरण के मद्देनजर प्रदेश में किये जा रहे औधोगिकरण की प्रकृति पर सवालिया निशान लगाने के साथ-साथ इसके व्यापक आधार को भी शामिल करती है!
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