Ek Nastik ka Dharmik Rojnamcha (Hindi)
Ek Nastik ka Dharmik Rojnamcha (Hindi)
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गाँधी जी ने दलितों को ‘हरिजन’ कहकर संबोधित किया था। आजादी के दो-तीन दशकों में यह शब्द ‘दलितों’ के लिए प्रचलित रहा, लेकिन डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के दलितों के प्रतीक बनते जाने के इन वर्षों में ‘हरिजन’ शब्द की जगह ‘दलित’ शब्द ने ले ली है। शायद ठीक हुआ क्योंकि गाँधी जी की तमाम उदारताओं के बावजूद– जो दलितों को ‘हरिजन’ कहने से व्यक्त होती है– ‘हरिजन’ शब्द जैसे उन्हें उपकृत करने वाला संबोधन है, उन्हें बराबरी का दर्जा देने वाला संबोधन नहीं। प्रश्न यह भी उठता है कि अगर दलित, ‘हरिजन’ हैं तो बाकी गैर-दलित क्या हैं? क्या वे ‘हरिजन’ यानी हरि के जन नहीं हैं? वैसे ‘दलित’ शब्द से भी मेरी पूरी सहमति नहीं है, इसके बावजूद कि हिंदू वर्ण-व्यवस्था में यह वर्ग हमेशा ‘दलित’ ही रहा है और अभी भी है लेकिन ‘दलित’ शब्द भी एक तरह से सवर्णों को ध्यान में रखकर गढ़ा गया शब्द है, हर तरह से उन्हें यह याद दिलाने के लिए बनाया गया शब्द है कि हम तुम्हारे द्वारा दलित किए गए हैं। मेरा ख्याल है कि इक्कीसवीं सदी में जिस तरह दलित पहले से अधिक संगठित और ताकतवर हो रहे हैं, जो उन्हें और भी होना चाहिए, उन्हें अपने लिए एक बेहतर शब्द चुनना चाहिए, जो उनके नये आत्म-विश्वास को प्रकट करे, जो सवर्णों को चेतावनी दे कि हम तुम्हारी बराबरी के इंसान हैं, किसी भी तरह तुमसे कमतर नहीं हैं, कम श्रेष्ठ नहीं हैं। ...इसी पुस्तक से...
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