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Balkrishna Bhatt Rachnavali: 4 Vol (Hindi) - HARDCOVER

Balkrishna Bhatt Rachnavali: 4 Vol (Hindi) - HARDCOVER

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बालकृष्ण भट्ट रचनावली के चार खंड नवजागरण विचार के आसंग में बालकृष्ण भट्ट के विशिष्ट व्यक्तित्व और पहचान की बानगी का मुकम्मल दस्तावेज हैं । 19वीं शताब्दी के हिंदी नवजागरण की पूरी बहस भारतेंदु–मंडल से शुरू होती है और उसी के आसपास चक्कर काटती है जबकि भारतेंदु–मंडल के भीतर और उसके समानांतर विभिन्न विचार समूहों की संगठित सक्रियता बनी हुई थी । भारतेंदु–मंडल से भिन्न विचार चेतना के श्रेष्ठ और सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीक बालकृष्ण भट्ट (1844–1914) हैं । वे 19वीं सदी के नवजागरण में राष्ट्रीयता के सवाल, भारतीय जन–मन की भावनाओं तथा उसके आंतरिक असंतोष के सच्चे प्रतिनिधि हैं । भारतीय जनता पर टैक्सों की मार तथा भारतीय व्यापार पर प्रतिबंध के बाद देश पर लगातार कर्ज बढ़ा, बेरोजगारी बढ़ी, नई जमींदारी व्यवस्था के हाथों किसान तबाह हुएµइन सभी मुद्दों पर बालकृष्ण भट्ट का विश्लेषण, उनके चिंतन के निहितार्थ उन्हें 19वीं सदी के नवजागरण में महत्वपूर्ण बनाते हैं । हिंदी प्रदीप का प्रकाशन कर बालकृष्ण भट्ट ने एक तरफ औपनिवेशिक दमन का विरोध किया तो दूसरी तरफ धर्म सुधार व समाज हितैषिता की लंबी लड़ाई लड़ी । उनके जीवन का एक ही ध्येय था ‘गुलामी से मुक्ति और सांस्कृतिक जागरण का प्रयास’ । कविवचन सुधा से सरस्वती तक जातीय जागरण का प्रयास दिखलाई पड़ता है लेकिन राजनीतिक जागरूकता का जोखिम भरा कार्य कियाµहिंदी प्रदीप के मार्फत बालकृष्ण भट्ट ने । वे 32–33 वर्षों तक अनुभव की विश्वसनीयता और अधिकार के साथ ज्ञान के नए आलोक से हिंदी समाज को परिचित कराते रहे साथ ही राष्ट्रीय चेतना, अंग्रेजी राज की आलोचना, सामाजिक दृष्टि, भाषा–साहित्य–संस्कृति के सरोकार और आलोचना–विवेक के व्यापक प्रश्नों के प्रति चैकस रहते हुए नवजागरण के योद्धा के रूप में जिए और मरे ।

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