Atihaasik Nausainik Vidroh aur Bhartiye Jan Aandolan 1946
Atihaasik Nausainik Vidroh aur Bhartiye Jan Aandolan 1946
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1946 का विशाल नौसैनिक विद्रोह भारत के इतिहास में विशेष स्थान रखता है। नौजवान नाविकों के इस विद्रोह से हम हिंदुस्तानी क्या सीख सकते हैं? ये सवाल इस किताब का मुख्य बिंदु है। आज़ादी के 75 साल बाद आज़ादी के संग्राम की ये भूली हुई सत्य कथा भारतीयों को याद करनी चाहिए। हाल में हुए अग्निवीर-अग्निपथ आंदोलन हमे एक सबक सिखाता है। ऐसा ही एक सबक नाविकों के इस वोद्रोह ने अंग्रेजों को 1946 में सिखाया था। नौजवानों को सपने दिखाना आसान है लेकिन उन सपनों को अगर साकार न किया जाए, तो परिणाम संजीदा होते हैं। रॉयल इंडियन नेवी (RIN) के नाविक रेटिंग्स (Naval Ratings) को दूसरे विश्व युद्ध में शरीक होने से कई उम्मीदें थीं। जब 1945-46 में इन उम्मीदों पर पानी पड़ा तो नाविक बाघी बन गए। दूसरी तरफ, शहरों की जनता महंगाई और कालाबाज़ारी से परेशान थी। बग़ावत को उसने पुरज़ोर समर्थन दिया और बम्बई और कराची जैसे शहरों में खून की नदियाँ बहने लगीं। कोमुनिस्ट पार्टी को छोड़, किसी रेजनैतिक दल ने नाविकों को समर्थन नहीं दिया और शहरी भीड़ और रेटिंग्स को अंग्रेजी फौज के हवाले कर दिया। विद्रोह को बेरहमी से कुचला गया और 400 से ज़्यादा भारतीय मौत के घाट उतार दिए गए। जख्मियों की संख्या मालूम नहीं। लिहाज़ा फरवरी 1946 देश और ब्रिटिश साम्राज्य के लिए एक गंभीर संकट की तरह उभरा। ये किताब हिंदी पाठकों और हिंदुस्तानी इतिहास-छत्रों के लिए ख़ास तौर पर तैयार की गई है और इस बग़ावत के प्राथमिक स्रोतों पर आधारित है। इसे आधुनिक भारतीय सामाजिक, रेजनैतिक और सामरिक इतिहास के दृष्टिकोण से पढ़ा जाना चाहिए।
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